नवरात्री व्रत कथा आरती सहित | navratri colours 2023: एक समय की बात है, बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों रखा जाता है? इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है है, इसे किस प्रकार करना उचित रहता है? सबसे पहले इस व्रत को किसने किया था? सो विस्तार से बताइए।
ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी के प्रश्न का जवाब देते हुए बताया है कि नवरात्र व्रत से मनुष्य की समस्याओं का समाधान होता है। यह व्रत मनुष्य के मनोरथ पूर्ण करने में मदद करता है और समस्त कामनाओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। इस व्रत से पुत्र, धन, विद्या और सुख की प्राप्ति होती है तथा रोग दूर होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं, घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है और सभी पापों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा, व्रत करने वाले मनुष्य की संतान होती है और वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है। अगर कोई स्त्री या पुरुष इस व्रत को नहीं करता है तो उसे दुःख और कष्ट से घिरा होना पड़ता है और उसके संतान नहीं होते हैं। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन कर सकता है और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे।
हे बृहस्पते! जिसने भी पहले इस व्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का बात को सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्माण मनुष्यों का कल्याम करने वाले इस व्रत के इतिहास को मुझे सुनाइए, मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करें।
यह एक प्राचीन कथा है जिसमें पीठत नाम का एक ब्राह्मण अनाथ बच्ची सुमति को जन्म देता है जो भगवती दुर्गा का भक्त होती है। सुमति बचपन से ही बड़ी सुंदर बच्ची थी और उसके पिता रोज भगवती दुर्गा की पूजा करते थे जिसमें सुमति भी उनके साथ होती थी। एक दिन सुमति खेल में लग गई थी जिसके कारण उन्हें भगवती की पूजा में उपस्थित नहीं होने के लिए दोष दिया गया था। उसके पिता ने उसे धमकाकर बताया कि उसे अगले दिन से किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ विवाह करना होगा।
सुमति को अपने पिता के इस वचन से बड़ा दुख हुआ था जिसके बाद उन्होंने अपने पिता से कहा, “हे पिता! मैं आपकी कन्या हूँ और सब तरह आपके आधीन हूँ। मेरी इच्छा के अनुसार कुछ भी करें। मेरा विवाह जिससे हो, वही होगा जो मेरे भाग्य में लिखा है। मैं अपने कर्मों पर विश्वास करती हूँ जो भी कर्म मैं करूँगी, उसके अनुसार मुझे फल प्राप्त होगा। क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।”
जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इसी तरह कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण ने क्रोधित होकर अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टि के साथ कर दिया और बहुत क्रोधित होकर पुत्री से कहने लगा- “हे पुत्री! अपने कर्मों के फल को भोगो, और देखो कि भाग्य की इच्छा में रहकर तुम क्या करती हो।” पिता के इस प्रकार कटु वचनों को सुनकर सुमति मन में विचार करने लगी – “अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है कि मुझे ऐसा पति मिला।” इस तरह अपने दुख का विचार करते हुए वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़ी कठिनाई से व्यतीत की।
उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।
तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।
ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु (ठीक है) ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
महातम्य- इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्6य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शरक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? बोलो देवी भगवती की जय।
नवरात्री व्रत कथा के लाभ
नवरात्री व्रत कथा की विधि : प्रात:काल स्नान करके माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर के सामने दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा करनी चाहिए। नवरात्री व्रत कथा करने से श्री दुर्गा माँ सब विध्न दूर करके सुख समृद्धि देती है।
नवरात्री जाप मंत्र- ऊं ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नम:। इस मंत्र को 108 बार जाप करें।
नवरात्री आरती
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ॐ
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै ॐ
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ॐ
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ॐ
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ॐ
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू ॐ
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी ॐ
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ॐ
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ॐ
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
नवरात्रि के प्रत्येक दिन इस प्रकार की पूजा विधि करें –
- दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- मां दुर्गा को कुछ फूल चढ़ाएं और तस्वीर या मूर्ति को सिंदूर, चंदन और हल्दी के लेप से सजाएं।
- पूजा के दौरान अपने द्वारा बोए गए जौ के बीजों पर थोड़ा जल छिड़कें।
- पूजा के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए कुछ दिलचस्प व्यंजन पेश करें।
- मां दुर्गा की आरती करें।
- प्रसाद को आमंत्रितों और परिवार के सदस्यों को वितरित करें।
- यह पूजा नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रतिदिन की जानी चाहिए।
navratri colors 2023
- नवरात्रि के पहले दिन, मां शैलपुत्री की पूजा में सफेद रंग पहनना चाहिए। यह प्रेम और वफादारी का प्रतीक होता है।
- नवरात्रि के दूसरे दिन, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में लाल रंग पहनना चाहिए। यह रंग शक्ति और उग्रता के लिए प्रसिद्ध होता है।
- नवरात्रि के तीसरे दिन, मां चंद्रघंटा की पूजा में रॉयल ब्लू रंग पहनना चाहिए। यह रंग धन, शक्ति और स्वास्थ्य में सुधार लाता है।
- नवरात्रि के चौथे दिन, देवी कुष्मांडा की पूजा में पीला रंग पहनना चाहिए। हिंदू धर्म में इस रंग को सीखने और ज्ञान के रूप में दर्शाया गया है।
- नवरात्रि के पांचवें दिन, मां स्कंदमाता की पूजा में हरा रंग पहनना चाहिए। यह रंग विकास और नये जन्म का प्रतीक होता है।
- नवरात्रि के छठे दिन, देवी मां कात्यायनी की पूजा में भूरे रंग को पहनना चाहिए। यह शांत और एलिगेंट रंग होता है जो नकारात्मकता से मुक्ति दिलाता है।
- नवरात्रि के सातवें दिन देवी मां कालरात्रि की पूजा में नारंगी रंग पहनना चाहिए। यह रंग गर्मी, आग और ऊर्जा से जुड़ा हुआ है।
- नवरात्रि के आठवें दिन पीकॉक ग्रीन रंग पहनकर देवी मां महागौरी की पूजा करनी चाहिए। यह रंग खुशियों का प्रतीक माना जाता है और तनाव से मुक्ति भी दिलाता है।
- नवरात्रि के नवमी के दिन देवी मां सिद्धिदात्री की पूजा गुलाबी रंग पहन कर करनी चाहिए। यह रंग बुद्धि और शांति का प्रतीक है।
नवरात्रि पर शक्ति अनुसार उपवास या फलाहार करके व्रत रखते हैं तो आपको भी इन रंगों के वस्त्रों को जरूर पहनना चाहिए। इन रंगों के वस्त्र पहनने से माता रानी बेहद प्रसन्न होती हैं। इससे आपको मन की शांति, धन लाभ, सौभाग्य, मनोकामना पूर्ति आदि जैसे आशीर्वाद भी प्राप्त होते हैं।
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