परिचय:
श्री khatu shyam जी कस्बा राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है जहाँ पर बाबा श्याम का मंदिर है जो कि 1720 में अभय सिंह जी द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया था। इस मंदिर में बर्बरीक के सिर की पूजा होती है जो कि भीम के पौत्र और घटोत्कच के तीन पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र थे। हालाँकि, बर्बरीक के धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के स्याहड़वा गांव में की जाती है। ये दोनों ही मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध हैं और भक्तों के बीच बहुत ही लोकप्रिय हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम से पूजे जाएँगे। जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुए थे और उन्होंने वरदान दिया था कि तुम्हारे भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी जो तुम्हारे नाम का सच्चे दिल से उच्चारण करेंगे। उनकी सभी कार्य सफल होंगे जो वे सच्चे मन और प्रेम से पूजा करेंगे।
बर्बरीक नाम से जाने जाने वाले योद्धा मध्यकालीन महाभारत से उत्पन्न हुए थे। वे भीम और माता अहिलावती के पौत्र थे और अत्यंत बलशाली थे। उन्होंने बचपन से ही वीरता और युद्ध कला सीखी थी। वे श्री कृष्ण और अपनी माँ से युद्ध कला का उपदेश लेते रहे थे। बर्बरीक ने महादेव को घोर तपस्या करके प्रसन्न कर लिया था, जिससे वे तीन अमोघ बाण प्राप्त कर लिए थे। यही कारण है कि वे तीन बाणधारी के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्हें दुर्गा ने भी आशीर्वाद दिया था और उन्हें एक अद्भुत धनुष भी प्रदान किया था।
जब महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया तब बर्बरीक ने अपनी माँ से आशीर्वाद लेकर उस युद्ध में सम्मिलित होने का वचन दिया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े।
महाभारत में बर्बरीक नाम का एक बलशाली योद्धा है जो बाप के कट्टर रुख के बाद धरती पर आया था। इस योद्धा के शानदार बलिदान का कथन महाभारत में मिलता है। बर्बरीक ने कृष्ण से अपने पास रखे तीन बाणों का विवरण दिया जिन्हें उसने उनके पिता से प्राप्त किया था। यदि तीनों बाणों का उपयोग युद्ध में किया जाता है, तो पूरे ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा। कृष्ण ने बर्बरीक को इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाने की चुनौती दी जिसे बर्बरीक ने स्वीकार कर लिया। उसने अपने एक तीर से वृक्ष के सभी पत्तों को काट दिया और कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा। कृष्ण ने बर्बरीक से उनके संदेश के बारे में पूछा और उसने उत्तर दिया कि वह उस पक्ष को जो हार रहा होगा समर्थित करेगा।
ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से शीश का दान माँगा था। युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है। इसलिए वे शीश का दान माँगने आये थे। बर्बरीक ने पहले उनसे दान माँगा था, लेकिन श्री कृष्ण ने उनसे शीश का दान माँगा था। बर्बरीक ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर दी थी और श्री कृष्ण ने उन्हें उनके अस्तित्व के बारे में समझाया था। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, जो श्री कृष्ण ने स्वीकार कर ली थी। उसके बाद श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना पूरी की और बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत कर दिया था।
महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों के बीच युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आपसी विवाद हुआ। श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि बर्बरीक का शीश सबसे महान पात्र है, जो युद्ध में विजय के निर्णय करता है। बर्बरीक ने भी यही बताया कि श्री कृष्ण ही उनकी शिक्षा और युद्धनीति में सबसे महान थे। श्री कृष्ण ने युद्ध में अपने सुदर्शन चक्र दिखाया और महाकाली को शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन करने का आदेश दिया। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में उन्हें श्याम नाम से जाना जाएगा।
महाराजा खाटू श्याम जी के जन्म स्थान नहीं मालूम है, लेकिन वे राजस्थान के एक प्रसिद्ध देवता हैं। उनका नाम श्याम था और वे अपने काले रंग के कारण खाटू नगर के लोगों द्वारा खाटू श्याम बाबा के नाम से जाने जाते हैं। श्याम बाबा को एक उन्नत परिवार से जोड़ा जाता है और उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में माना जाता है।
खाटू श्याम बाबा के बारे में कुछ किस्से हैं, जिन्हें लोग विश्वास करते हैं। एक किस्से के अनुसार, श्याम बाबा एक योगी थे जो अपने आप को तपस्या में लगा रहे थे। एक दिन वे खाटू नगर में आए और वहां एक गाय के पास बैठ गए। उस दिन से उनके प्रभाव से लोग उन्हें देवता के रूप में मानने लगे।
उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी
बर्बरीक नाम श्री खाटू श्याम जी का बचपन का नाम था। उनकी माता, गुरु और रिश्तेदार उन्हें इसी नाम से जानते थे। श्री श्याम जी ने उन्हें कृष्ण नाम दिया था। ये नाम उनके घुंघराले बालों के कारण पड़ा था। उन्हें श्याम बाबा, तीन बाण धारी, नीले घोड़े पर सवार, लखदातार, हारे का सहारा, शीश का दानी, मोरवी नंदन, खाटू वाला श्याम, खाटू नरेश, श्याम धणी, कलयुग का अवतार, कल्युग के श्याम, दीनों का नाथ और अन्य नामों से भी जाना जाता है।
कैसे बने बर्बरीक खाटूश्याम जी ? (khatu shyam ji)
खाटूश्याम जी की कहानी मध्य कालीन महाभारत से शुरू होती है। खाटूश्याम जी पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे अतिबलशाली भीम के पुत्र घटोट्कच और प्रागज्योतिषपुर (वर्तमान आसाम) के राजा दैत्यराज मूर की पुत्री कामकटंककटा “मोरवी” के पुत्र थे। खाटूश्याम जी बाल अवस्था से बहुत बलशाली और वीर थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माता मोरवी तथा भगवान कृष्ण से सीखी। उन्होंने भगवान शिव की आराधना करके उनसे तीन बाण प्राप्त किए थे। इस तरह उन्हें तीन बाण धारी के नाम से जाना जाने लगा और दुर्गा ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया जो उन्हें तीनो लोकों में विजय दिला सकता था। जब महाभारत का युद्ध कोरवों और पांडवों के बीच चल रहा था तो खाटूश्याम जी को यह बात पता चली तो उनकी भी इच्छा युद्ध करने की हुई। वे अपनी माता के पास गए और बोले मुझे भी महाभारत युद्ध में भाग लेना है|
उनकी माता बोली पुत्र तुम किसकी तरफ से युद्ध करने की इच्छा रखते हो । तब उन्होंने कहा में हारे हुए की तरफ से युद्ध करुगा ।
बर्बरीक को युद्ध के लिए जा रहे थे, लेकिन रास्ते में उन्हें श्री कृष्ण मिले। श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि कलयुग में लोग उन्हें श्याम के नाम से जानेंगे क्योंकि उन्होंने हारे हुए के साथ युद्ध करने की इच्छा जाहिर की थी । बर्बरीक का शीश खाटू नगर में दफनाया गया था, इसलिए उन्हें खाटूश्याम जी कहा जाता है।
श्री मोरवीनंदन khatu shyam ji
ऋषि वेदव्यास द्वारा रचित स्कन्द पुराण के अनुसार, महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र वीर घटोत्कच की शास्त्रार्थ प्रतियोगिता जीतने के बाद, उनका विवाह प्राग्ज्योतिषपुर (आजकल के असम) के राजा दैत्यराज मूर की पुत्री कामकटंककटा से हुआ। कामकटंककटा को “मोरवी” नाम से भी जाना जाता है। घटोत्कच और माता मोरवी को तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई, और सबसे बड़े पुत्र को बब्बर शेर की तरह रखा गया और उसका नाम बर्बरीक रखा गया। आज लोग बर्बरीक को खाटू के श्री श्याम, कलयुग के देव, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, शीश के दानी, खाटू नरेश और अन्य अनगिनत नामों से जानते हैं। उनके दो अन्य पुत्रों के नाम अंजनपर्व और मेघवर्ण रखे गए थे। घटोत्कच के ज्येष्ठ पुत्र बर्बरीक महादेव शिव शंकर के अनन्य भक्त बने।
बर्बरीक के जन्म के बाद महाबली घटोत्कच ने उन्हें भगवान श्री कृष्ण के पास ले गए। श्री कृष्ण ने उन्हें देखते ही उनसे कहा – “हे पुत्र मोर्वेय! मुझे तुम प्यारे हो जैसे मुझे तुम्हारे पिता महाभारत के योद्धा घटोत्कच प्यारे हैं।” तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण से पूछा – “हे गुरुदेव! इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग क्या है?” श्री कृष्ण ने उन्हें उत्तर दिया – “हे पुत्र, इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग परोपकार और निर्बल का सहारा बनना है। तुम्हें बल और शक्ति प्राप्त करनी होगी। महीसागर क्षेत्र में नवदुर्गा की आराधना करो और शक्ति प्राप्त करो।” श्री कृष्ण के इस उत्तर के बाद बर्बरीक ने उन्हें प्रणाम किया। श्री कृष्ण ने उनके सरल हृदय को देखकर उन्हें “सुहृदय” के नाम से संबोधित किया।
बाद में, बर्बरीक ने सभी अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान हासिल करने के लिए, महीसागर क्षेत्र में तीन वर्षों तक नवदुर्गा की पूजा की और असीमित शक्ति प्राप्त की। उन्होंने एक दिव्य धनुष भी प्रदान किया।
फिर उन्होंने श्रीकृष्ण की प्रेरणा से भगवान शंकर की तपस्या की और उनसे तीन बाण प्राप्त किए। इन तीन बाणों की मदद से उन्हें तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की जा सकती थी। बर्बरीक को “चण्डील” नाम दिया गया।
माँ जगदम्बा ने उन्हें उनके भक्त विजय नामक एक ब्राह्मण की सिद्धि को पूर्ण करने के लिए निर्देश दिया। बर्बरीक ने ब्राह्मण का यज्ञ सम्पूर्ण करवाया और पिंगल, रेपलेंद्र, दुहद्रुहा तथा नौ कोटि मांसभक्षी पलासी राक्षसों को भस्म कर दिया।
देवी-देवताओं ने उन्हें बहुत प्रसन्न किया और यज्ञ की भस्मरूपी शक्ति प्रदान की।
एक बार बर्बरीक ने पृथ्वी और पाताल के बीच रास्ते में नाग कन्याओं का वरण प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की |
प्राचीन काल में, महाभारत युद्ध के समय, वीर बर्बरीक ने अपनी माँ मोरवी से अपने युद्ध भाग में लेने की इच्छा जताई। उस समय माँ ने उसे यह आदेश दिया कि वह युद्ध में शामिल हो, लेकिन उसे हारने वाले पक्ष के साथ खड़ा होना होगा।
जब वीर बर्बरीक युद्ध में शामिल होने लगा, तब भगवान कृष्ण ने उसे उसके पूर्वजन्म के अल्प श्राप के कारण और उसकी योग्यता के आधार पर उसे युद्ध में शामिल होने से रोक दिया। भगवान ने सोचा कि यदि वीर बर्बरीक युद्ध में शामिल होता, तो महाभारत युद्ध के अंत तक वह हो सकता था।
उस वक्त रणभूमि में शोक की लहर फैल गई। इसके बाद, १४ देवियों ने अपना दर्शन कराया। वे उस समय उपस्थित योद्धाओं के सामने प्रकट हुए थे। देवियों ने उनसे बताया कि वीर बर्बरीक का योग्यता और उसके पूर्वजन्म के श्राप के बारे में। उन्होंने उसे उस श्राप से मुक्त कर दिया था।
द्वापर युग के आरंभ से पहले मूर दैत्य के अत्याचारों से पृथ्वी बेहद व्यथित थी। इस पर धरा अपने गौस्वरूप में देव सभा में उपस्थित हुई और अपनी दुःखभरी पुकार को देवों तक पहुँचाई। देवों ने इस पर ब्रह्मा जी से सलाह माँगी तो ब्रह्मा जी ने सभी को भगवान विष्णु की शरण में चलने की सलाह दी और उनसे पृथ्वी के संकट के निवारण हेतु प्रार्थना करने को कहा।
विष्णु जी के अलावा कोई नहीं है जो मूर दैत्य का संहार कर सके। उसे खत्म करने का अधिकार सिर्फ भगवान विष्णु को ही है। इसलिए हमें उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। यदि आप मुझे आदेश देते हैं तो मैं उसका संहार कर सकता हूँ।
ब्रह्मा जी ने यक्षराज सूर्यवर्चा को चेताया कि वह बहुत अहंकारी है। उसका दण्ड उसे जरूर मिलेगा। वह पृथ्वी पर जाने को कहा गया और उसका जन्म राक्षस योनि में होगा। जब धर्मयुद्ध होगा तो उसका शिरोभेद भगवान विष्णु द्वारा होगा और उसे सदा के लिए राक्षस बना दिया जाएगा।
समझाते हुए ब्रह्मा जी ने यक्षराज सूर्यवर्चा के लिए कहा – “इस अभिशाप के कारण तुमने देवों का अपमान किया है। मुझे तुम्हारा अपमान अनुभव हुआ है। मैं तुम्हें माफ करता हूँ। फिर भी तुम्हारे शीर्ष पर श्री कृष्ण भगवान अपने सुदर्शन चक्र से अपना उच्छेद करेंगे और तुम्हारे शीर्ष पर देवियों द्वारा अभिसिंचन होगा। इससे तुम्हें कलयुग में देवताओं के समान पूजनीय होने का वरदान मिलेगा।”
खाटू श्याम आरती – khatu shyam aarti
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
रतन जड़ित सिंहासन,
सिर पर चंवर ढुरे ।
तन केसरिया बागो,
कुण्डल श्रवण पड़े ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
गल पुष्पों की माला,
सिर पार मुकुट धरे ।
खेवत धूप अग्नि पर,
दीपक ज्योति जले ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
मोदक खीर चूरमा,
सुवरण थाल भरे ।
सेवक भोग लगावत,
सेवा नित्य करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
झांझ कटोरा और घडियावल,
शंख मृदंग घुरे ।
भक्त आरती गावे,
जय-जयकार करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
जो ध्यावे फल पावे,
सब दुःख से उबरे ।
सेवक जन निज मुख से,
श्री श्याम-श्याम उचरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
श्री श्याम बिहारी जी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
कहत भक्त-जन,
मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
जय श्री श्याम हरे,
बाबा जी श्री श्याम हरे ।
निज भक्तों के तुमने,
पूरण काज करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे ।
khatu shyam temple फोटो

खाटू श्याम मंदिर कौन से जिले में स्थित है?
खाटूश्यामजी भारतीय राज्य राजस्थान के सीकर जिले का एक कस्बा है। यह khatu shyam ji के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। बाबा खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत से बताया जाता है। कथाओं में खाटू श्याम मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है।
खाटू श्याम मंदिर कब जाना चाहिए?
श्री खाटू श्याम दर्शन के लिए कब जाना चाहिए :
खाटू श्याम जी के दर्शन करने के लिए वैसे तो साल के 12 महीने श्रद्धालु आते रहते है। लेकिन खाटू श्याम दर्शन का सबसे सही समय अगस्त-मार्च तक का सबसे बेस्ट होता है खास तौर पर जन्माष्टमी के समय यहाँ लाखो में दर्शनार्थी आते है।
खाटू श्याम क्यों प्रसिद्ध है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, khatu shyam baba का संबंध महाभारत काल से बताया जाता है. उन्हें भीम का पोता माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी शक्तियों से प्रसन्न होकर कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था. यही वजह है कि आज भी खाटू श्याम की पूजा होती है.
baba khatu shyam official website:
Read also:
I will immediately grasp your rss feed as I can not find your e-mail subscription link or newsletter service.
Do you have any? Kindly permit me recognize in order that I could subscribe.
Thanks.